रात गयी , और दिन नयी
हर दिन एक नयी शुरुवात बनी
बच्चपन में तो कूब मज़े की
रोते जगध्ते और हस्ते हुए भी
इसी तरह सारा जीवन चलता रहा
ना जाने कब बच्चपन ,जवानी में बदला
यह दुनिया की सफर तो है बड़ी लम्बी
कभी रुलाती है कभी हस्साती भी यही
कधम कधम रक्ते जायेंगे सभी
किसी और की राहें या अपने कुद की
सुख दुःख का पहिया चल्ता रहेगा
अँधेरा हो या फिर उज्जाला भरा
बुढ़ापा तो हमें बोहुत तड्पाएगा
आक़ीर फूल किला तो मर भी जायेगा
No comments:
Post a Comment